इस मौसम में फूड प्‍वाइजनिंग का शिकार न बनें

इस मौसम में फूड प्‍वाइजनिंग का शिकार न बनें

डॉक्‍टर अनिल चतुर्वेदी

गर्मियों में सेहत से जुड़ी सबसे बड़ी समस्‍या होती है फूड प्‍वाइजनिंग की। इसमें भी बच्‍चों में इसका खतरा सबसे अधिक होता है। गर्मियों में खाने-पीने की चीजें जल्‍दी खराब होती हैं और इनमें हानिकारण जीवाणु पनप जाते हैं। इसे खाने के कारण हमारा पेट संक्रमण का शिकार हो जाता है और हम फूड प्‍वाइजनिंग का शिकार हो जाते हैं। इस मौसम में ठंडे फल खूब मिलते हैं और गर्मी से राहत पाने के लिए हम कई बार बाजार में पहले से काट के रखे गए फल खा लेते हैं जो कि नुकसानदेह साबित होता है। अगर हम मेडिकल साइंस के हिसाब से देखें तो मई,जून और जुलाई का महीना हानिकारक जीवाणुओं के पनपने के लिए सबसे मुफीद होता है और इस लिए इन्‍हीं महीनों में फूड प्‍वाइजनिंग और पेट का संक्रमण भी सबसे तेज गति से लोगों को अपना शिकार बनाता है।

लक्षण

फूड प्‍वाइजनिंग के सबसे आम लक्षणों में पेट में ऐंठन, जी मिचलाना, डायरिया और कभी-कभी बुखार और ठंड जैसे लक्षण हो सकते हैं। इसके लक्षण खाना खाने के दो घंटे से लेकर कुछ दिनों में प्रकट हो सकते हैं। कभी-कभी तो फूड प्‍वाइजनिंग, पेट के फ्लू और पायरल संक्रमण में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है क्‍योंकि इनके लक्षण तकरीबन एक जैसे होते हैं।

उपचार

फूड प्‍वाइजनिंग भले ही रोगी को बहुत परेशान करे मगर रोगी की हालत ज्‍यादा गंभीर नहीं होती है। महत्‍वपूर्ण होता है समय पर डॉक्‍टरी सलाह और दवाएं लेना, उचित मात्रा में पानी लेना, उल्‍टी रोकने का प्रयास करना और आराम। इससे रोगी जल्‍द ठीक हो जाता है। इस बीमारी में ज्‍यादातर रोगियों को एंटीबायोटिक लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। भोजन की विषाक्‍तता का पता मल की जांच या भोजन की जांच से की जाती है। जिआरडिया जैसे परजीवी का संक्रमण होने पर इलाज अलग तरह से किया जाता है।

बचाव

फूड प्‍वाइजनिंग के मामले में उपचार से बेहतर है बचाव पर ध्‍यान केंद्रित करना। इसके लिए सबसे बेहतर तरीका है कि भोजन को छूने से पहले हाथों को अच्‍छी तरह से साफ किया जाए, भोजन को पूरी तरह पकाना चाहिए, कच्‍चे खाद्य पदार्थ से परहेज करें, जितना भोजन जरूरी हो उतना ही पकाया जाए, अगर फ‍िर भी खाना बच जाए तो उसे उचित तापमान पर रखना ताकि उसमें जीवाणु न पनप जाएं। इसी प्रकार मसालों और सॉस को भी उचित तापमान पर रखने की जरूरत होती है।

बच्‍चों में लक्षण

बच्‍चों में ये समस्‍या होने पर उनके शरीर में तुरंत पानी की कमी हो जाती है, उनकी चमड़ी ढीली पड़ जाती है और आंखें धंस जाती है। बच्‍चा ज्‍यादातर निद्रावस्‍था में ही रहता है, उसकी चेतना कम हो जाती है और उनके शरीर में पेशाब का बनना भी कम हो जाता है।

बच्‍चों में इलाज

बच्‍चों को तुरंत जीवन रक्षक घोल यानी ओआरएस देना शुरू कर देना चाहिए। इसके अलावा उन्‍हें नारियल पानी, छाद, पतली दाल, शीतल पेय आदि पिलाते रहना चाहिए। बच्‍चे के बेहोश होने, सांसे तेज चलने, पेशाब कम बनने, लगातार टट्टी आते रहने पर उसे नजदीकी अस्‍पताल में लेकर जाएं।

(डॉक्‍टर अनिल चतुर्वेदी की किताब फैमिली हेल्‍थ गा‍इड से साभार)

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